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प्रदेश में होगा बड़ा राजनीतिक फेरबदल
छिन सकती है 15 अगस्त के बाद मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी !
राजेन्द्र जोशी
देहरादून,
7 अगस्त। भारी आपदा से जूझ रहे उत्तराखण्ड में एक और आपदा दस्तक देने लगी
है। इस आपदा की गूंज भले ही बाहर न सुनाई दे रही हो, लेकिन कांग्रेस के
अंतहपुर में जरूर सुनाई दे रही है। दो महीने बाद भी आपदा राहत कार्य ठीक
नहीं होने से दस जनपथ मौजूदा सीएम से काफी नाराज हैं। कांग्रेस के युवराज
दो महीने से उत्तराखण्ड के कार्याें पर पैनी नजर रखे हुए हैं। राहुल के
सूत्र कांग्रेस सरकार की पल-पल की जानकारी उन तक पहुंचा रहे हैं। पुष्ट
सूत्र बताते हैं कि हाईकमान इस पशोपेश में है कि पहले प्रदेश अध्यक्ष बदलें
या फिर सीएम। कमोबेश दोनों ही कुर्सी के विकल्प तलाश लिए गए हैं। अगर कोई
बहुत बड़ी घटना सामने नहीं आई तो 15 अगस्त के बाद उत्तराखण्ड की सरकार और
संगठन में नए चेहरे दिखाई देंगे। गौरतलब हो कि उत्तराखण्ड सरकार पर 16-17
जून मंदाकिनी और अलकनंदा घाटी में आई महाप्रलय के बाद चार दिन तक हाथ पर
हाथ धरे रहने और आपदा में फंसे लोगों को उनके भाग्य के भरोसे छोड़ने का आरोप
लगता रहा है। इतना ही नहीं आपदा के दौरान मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे को
लेकर भी प्रदेश में खासी चर्चाएं रही कि आखिर जब यहां लोग जीवन और मौत के
बीच झूल रहे थे, तो मुख्यमंत्री दिल्ली में क्या कर रहे थे, जबकि केंद्र
सरकार ने उत्तराखण्ड सरकार को राहत एवं बचाव कार्याें के लिए धन की कमी
सहित किसी भी तरह की अन्य कमी में साथ देने का वादा किया था। वहीं राज्य को
दोबारा खड़ा करने के लिए पुर्नविकास एवं पुर्ननिर्माण को लेकर प्रदेश
अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के बीच हुई नूराकुश्ती को भी केंद्र ने गंभीरता से
लिया है। यहां यह भी काबिले गौर है कि राहत एवं बचाव कार्याें में प्रदेश
सरकार द्वारा की जा रही हीलाहवाली को देखते हुए देश के इतिहास में आजादी के
बाद यह पहला मौका है जब केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकार के उपर कैबिनेट
मंत्रियों की समिति और कैबिनेट सचिवों की एक कमेटी बनाकर राज्य में
पुर्नवास एवं पुर्ननिर्माण के कार्यों के देख-रेख का जिम्मा सौंप दिया।
इतना ही नहीं आपदा के दौरान राहत कार्यों की मॉनिटरिंग के लिए केंद्र ने
उत्तराखण्ड के अधिकारियों और नेताओं पर भरोसा न कर कैबिनेट सचिव ए.के.
दुग्गल को राज्य की पूरी जिम्मेदारी दी। वहीं आपदा के दौरान चल रहे राहत
कार्यों का जायजा लेने कांग्रेस के युवराज भी बिना कुछ किसी को बताए आपदा
प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर लौट गए। उन्होंने भी प्रदेश सरकार द्वारा
आपदा राहत कार्यों में की जा रही हीलाहवाली पर नाराजगी जाहिर की, जबकि
प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी प्रभावित क्षेत्रों
का दौरा कर राज्य के बदतर हो रहे हालतों का जायजा लिया। सरकार पर आरोप है
कि राज्य आपदा के बाद के हालतों से भी प्रदेश सरकार ने वे जरूरी कदम नहीं
उठाए, जो उसे उठाने चाहिए थे। प्रदेश सरकार पर आपदा के बाद 50 दिनों तक भी
प्रदेश के मुख्य मार्ग न खोल सकने सहित आपदा प्रभावित क्षेत्रों तक
खाद्यान्न चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाएं न पहुंचाए जाने का आरोप लग रहा
है। इन सब आरोपों को देखते हुए दस जनपथ उत्तराखण्ड में कांग्रेस सरकार से
कतई खुश नहीं है और उसने प्रदेश अध्यक्ष सहित मुख्यमंत्री को बदलने की
कवायद शुरू कर दी है। पुष्ट सूत्रों के अनुसार भ्रष्टाचार और अन्य मामलों
में लिप्त नेताओं की इस सूची से बाहर कर दिया गया है, एक जानकारी के अनुसार
प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए जनजातीय क्षेत्र से एक विधायक को जो कि प्रदेश
कैबिनेट में मंत्री भी है को जिम्मेदारी दी जा सकती है, जबकि मुख्यमंत्री
पद की सूची में केंद्रीय मंत्री हरीश रावत के साथ, विधानसभा अध्यक्ष गोविंद
सिंह कुंजवाल और तेज तर्रार महिला नेता डा. इंदिरा हृदयेश पाठक का नाम
सबसे आगे है। यह दस जनपथ की इच्छा पर निर्भर है कि वह किसे प्रदेश अध्यक्ष
और किसे प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपता है। वहीं जानकार सूत्रों
का यह भी कहना है कि विजय बहुगुणा की ताजपोशी को लेकर दस जनपथ में तरह-तरह
की चर्चाएं चल रही हैं, सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि न्यायविद् और
स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा के पुत्र होने के नाते विरासत में मिली राजनैतिक
पृष्ठ भूमि के बावजूद वे दस जनपथ की आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाए हैं,
यही कारण हैं कि कांग्रेस आलाकमान को मुख्यमंत्री बदलने पर विचार करना पड़
रहा है। राजनैतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि कांग्रेस आसानी से
मुख्यमंत्री नहीं बदलती है, लेकिन उत्तराखण्ड के हालात जिस तरह से हो चुके
हैं और दिन -ब- दिन जिस तरह से कांग्रेस की लोकप्रियता में कमी आ रही है
उससे दस जनपथ यह मानने लगा है कि अब पानी सर से उपर बढ़ चुका है लिहाजा
कांग्रेस की छवि और 2014 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए नेतृत्व परिवर्तन
आवश्यक हो गया है।
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